थारी म्हारी

नित हुसियारी

कलावंत!

गूंथै-

फगत

झूठ रौ जाळ

पण

जे व्हैती

झूठ रै जड़

तो पूग जाती-

पिरथी फोड़ 'र

ठैठ पाताळ।

स्रोत
  • सिरजक : गजेसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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