गाईजै ऊंचै सुर में गीत
‘प्रिथमी पर पाबू,मिणधारी रैसी अमर’
हां! विरली वीरत
अर
धवळ कीरत रौ वाहक है
झरड़ो! पाबू सूं ही करड़ौ।
देवळ री गायां सारू
जद सैंग धांधळ रा
रणभोम रै सिरांणै सोयग्या
उण बखत...
सगळी छत्राण्यां
सांम रौ साथ करण सारू
‘अगन-स्नांन’ री त्यारी कीनी।
बूड़ै री अरधांगण
डोड गेहली
सत री पतवार थामी
‘अगन-झाळ’ में बैठी
उण समै इज
‘गरभ’ रै मांय सूं झीकौ दियण सूं
झरड़ौ जलमियौ।
धांधलहरा!
कुण बांटतौ गुळ
कुण करावतौ रैयांण
कुण कोड सूं बधावतौ
क्यूं कै
सगळा घर आळा तौ
तरवार री धार सूता
कै प्रचंड अगन में जळिया।
फगत अेक भूआ ही पेमां
जकी उठै सूं घणी अळगी
जिण खन्नै ना तो
मरण रा समाचार पूगा
ना जलम री वधाई पूगी।
तेज-तपधारी बाळक
अभावां रै आंगण पळियौ
पुहुप जिम कंवळी काया
कांटां रै ताकड़ी तुली
शैशव अर बाळपण
कुण जांणै
किणनै ठाह कै
कित्ता दौरा बीतिया?
समै रै परवांण
धुनधारी जीवतौ रैयौ
सूरज री तपत सूं तप
कुंदण ज्यूं निखरतौ रैयौ
पल-पल वैर री आग में
झुळसतौ रैयौ।
आंख्यां में राता डोरा
आकरी रीस
घुळ-घुळ नै गाढ़ी व्हैगी
प्रतिशोध रौ भाव
दिनों-दिन बधतौ इज गियौ।
काळ रै भाल माथै
कीरत लेख लिखणिया
किणरै रोक्यां रुकै
जम रै जबड़ै में घालणिया हाथ
किणसूं डरिया करै?
झरड़ो! साचैलो शूर
प्रणपाळण सूं पैलां क्यूं मरै?
छैवट वौ दिन आयौ
जिणरी उडीक बारह बरसां तक कीनी
दीपदीपतै चैरै माथै ओज री अगन दहकी
बळबळतै काळजै
वैर लैवण री हूंस जागी।
अनमी जायल जा पूगौ
सरवर री पाळ पर बेठौ
पणिहार्यां पांणी भरती थकी
अणजाण इण टाबर नै देख्यौ
जाय’र पेमां नै केयौ...
‘कोई नासेटू टाबरियौ दीठौ
उणरौ उणियारो थांरै सूं मिलै
कोई होवसी मावड़ी जायौ
कै होवसी नानांणै सूं आयौ
कै होवसी भावज रै जायौ
सैंनरूप! है वो थांरौ इज रूप।’
भूआ आय’र भतीज सूं मिळी
गळौ भर’र जी भर रूनी
झरड़ै थ्यावस दीनी
प्रण री बातड़ी अरथाई।
जायल रै महलां में झरड़ै
फूंफै नै ज्वारड़ा कीना
तलवार ले राटकियौ लारै
खींचियां रै दंभ नै गाळियौ
मोटी! अेकलड़ौ ई रैयौ लांठौ
जींदराव नै मार जोधार
वैर नै पाछौ वाळियौ।
बखत रै परियांण
झरड़ौ! बणियौ रूपनाथ
गोरख रौ चेलौ व्हैग्यौ
नाथ-पंथ री नवली लीक
जीवण-अरपित कर दीनौ।
सैंगाळ धोरै री ऊंची टूंक
धांधलहर धूणौ थरपियौ
आतम-तत्त री बात जांण
अवधूत इणी में रमग्यौ
व्हैग्यौ जग-प्रख्यात
साधक सांतरौ बाजै
परचा पूरमपूर
हिमाचल तांई सुणीजै।
हे जाहर नाथ!
मरू रै मांणस-मांणस
कंठां थारी बात
अजै तक चालती आवै
करड़ैपण रै पांण
जन-जन शीश झुकावै।