जी करै किं अर थाप घालद्यूं।

दो चार ही नीं धाप घालद्यूं।

दोलड़ै मूंडै रो थे मुंडो ढूँढो,

बीं कांकरा छाप घालद्यूं।

नीं तो गिणुं गिणन द्यूं ,

लागै कै बिन्यां नाप घालद्यूं।

पोत पड़ै उगाड़ बिचाळै,

जको कर्‌यो सो पाप घालद्यूं।

ज्हैर ज्हैर सूं ही मरतो बतावैं,

गळै मां काळो सांप घालद्यूं।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप पारीक 'दीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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