म्हैं ज्यूं ज्यूं भाजूं
थारा सूं आंतरै
थारी हेजाळू सांसां रौ निवास
ग्हारै ओळूं-दोळूं
अतूट घेरो घाल
म्हंनै च्यारूं कूंटां रोड़ न्हाकै!
म्हैं मांय रौ मांय खीजूं
अेकण ठौड़ रुप्योड़ौ छूजूं
जद म्हारी सांसां थाकण लागै
म्हैं थारै ई फींफरा री हवा खैंचूं।
अेक सबदहीण अकथ लाय
म्हंनै रिब-रिब दाझै
तद म्हैं थारो मया री दोवड़ ओढूं
पण म्हारौ रूं-रूं सरमावै लाजै!
अेक काळौ समंदर
म्हंनै डुबोवण खातरत
हर छिण आफळै
म्हैं झांपळियां भरतौ आथड़ूं
म्हंनै ठा है म्हारी आफळ अेकठ होय
थारी बजर छाती रौ सरणौ मांगै...
म्है जद कद बोलूं
थारै नांव रौ पैळौ आखर
म्हारी रग-रग मिठास घोळै
अर थूं पिघळण लागै।
अेक गना रै ओळावै
कीं सांयत सांचरै
थारै डोलां म्हारै मनां
म्हारी जांमण म्हनै मुगत कर दै
म्हारी आंख्यां अनंत उजास बरसै।