गुवाड़ी आम हो या खास,सबकै सोवती जाजम।
घणां मन मोवणां चितराम, मूंडै बोलती जाजम।
रंग्योड़ी रीत का रंग स्यूं, छप्योड़ी हेत छापा सूं,
बधाती बारणा री स्यान, रंगड़ा ढ़ोळती जाजम।
बधावा गावती दस पांच, होती कामण्यां भेळी,
मडै हो आंगणै सुब काम मिसरी घोळती जाजम।
पसर जाती खुशी में आ, बिछेड़ी स्यान सूं रै'ती
मुसीबत में हुतो कुनबो दरद सूं डोलती जाजम।
कदै छोटा बड़ा रै बीच में, नं भेद आ जाण्यों,
बरोबर एक तक्कड़ में सबी'नैं तोलती जाजम।
जदां भी बैठता सगळा, कुटम्बी सैंण व्है भेळा,
घुळेड़ी गांठ मनड़ां री जुगत सूं खोलती जाजम।
कठै बै भाव हिवडै रा, कठै बो हेत अब 'चंचल',
सुकड़ती रोज जावै है अमोलक मोलती जाजम।