1
रगत पीणियां धन कुबेर अै,
महलां में मनमौज करें।
अेक ओड मेहनतियां मानस,
झोंपड़ियां में भूख मरें॥
2
अेक ओड़ मेहनतियां मिनखां रा,
टाबर भूखा रोवै।
एक ओड़ उणरा कूकरड़ा,
दूध-पिवै गदड़ा सौवें।
3
जद-जद जुल्म ज्यादती ज्यादा,
जोर उठा जमदूत बनैं।
तद-तद जागै जोत जागरण,
जग में जबरा जड्ग ठनै॥
4
मिनखां रो मानस उठ जाग्यो,
महनत री पूजा होसी।
हां हुजूरियां, मुफ्तखोरियां,
दुनिया में मिटके रहसी॥
5
अब समाज री नयी चेतना,
नींव नयी धरके रहसीं।
सदियां पिछड़्या गांव गुवाड़ी,
अब आगे बढ़के रहसी॥
6
इण समाज री कच्ची नींवां,
वर्णभेद रूढ़ी ढ़हसीं।
छूआछूत ऊंच नींचरा,
भेदभाव मिटके रहसीं॥
7
धण धरती सबरी थाती है,
यो नारो लगके रहसी।
धन धरती है नहीं अेकरी,
इण खातिर बंटके रहसी॥