दड़ाछंट
बसत ज्यूं बरततां
लुगाई जात नैं
करता पूरण
आपरी वासना
नीं सरम!
नीं लाज!!
उलटौ करता गुमेज
इतरावता मरदानगी माथै
इधकार रै जोर
पण कैया करै नीं-
''सौ सुनार री अेक लुहार री!''
जुग जूनै
हुय जांवती भेंटां ई
कदी-कदास
जबाला जैड़ी नार सूं
जुग बदळग्यो आज तो
जबालावां ऊभी है जगां-जगां
ललकारै है साम्हीं छाती
आं कळमुंहां नै।