घण सुख री घड़ियांह, सगळी दुनियां साथ दै।
पण अबखी पड़ियांह, आवै विरळा इन्द्रवा।।1।।
लाखां अणपढ लोग, जके पड़्या भ्रम जाळ में।
राजनीति रौ रोग, असह मुलक नू इन्द्रवा।।2।।
विष री बोई वेल, मीठा फळ कीकर मिळै।
तिलां जिसौ इज तेल, अवनी दरसै इन्द्रवा।।3।।
तूंडै आयां तेड़, ठहरै नीं जळ ठीकरां।
गमै हेत इण गेड़, अन्तस फाटां इन्द्रवा।।4।।
किसमत लिखियौ कोय, खोस सकै नह खलक में।
रै बुरचींता रोय, आपे थकसी इन्द्रवा।।5।।
सगळी तिकड़म साथ, रात दीह तोतक रचै।
हार जीत हरि हाथ, अरि रै हाथ न इन्द्रवा।।6।।
ओढ़ण भगवां अंग, हर पूजीजण री हियै।
राजनीति रौ रंग, अजब साधुवां इन्द्रवा।।7।।
धौळौ दूध न धार, सब पीळौ सोनौ नहीं।
सांग घणा संसार, ओळखणा झट इन्द्रवा।।8।।