लाल

हरियो

पीळौ

नारंगी

कीं रंग उछाळ्या

अर बणग्यो

आभै मांय इंदर धणख

दुनिया कोडीजती

देखण ढूकी

अर बणावण वाळो भी

देखे हो

आपरो बणायोड़ो धणख

इंदर-धणख

अर अेक छोर सूं

दुजे छोर तांई मंडग्यो

इंदर धणख

मुळकण लाग्यो (वो)

देखणिया आज मिळिया

नीं जणै

वो तो रोजीना उछाळतो रंग

अर

रचतो धणख

अजैतांणी

जाणै कितरा

बणाय दिया इंदर-धणख

पण

चाइजै देखण वाळा भी

मिळिया तो हुयौ नेहचो

स्रोत
  • पोथी : पैल-दूज राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : सीमा भाटी ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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