हे सुरपत!

थूं बैठौ ऊंचै आसण धार

रीझाल़ू! राजसभा रै आंगणै

जठै

मंडी है मजलिस अर मैफिल

निरत करती नचेरियां रा

अंग अंग थिरकै है

वाजिंत्रा अर साजिंदां सुर साथै

कवियण बखांणै थारौ जस

थूं आणंद अरोगै

मदमस्त हुयोड़ौ।

हे इंदर!

मत भूल

थारै इणीज ठरकै नै देख

असुरां आड़ाखेड़ी मांडी थां सूं

अर

थां बिचाळै राड़ रुपगी

जदी

केई वळा खेटका हुया

जठै

जीव खिंडिया खोखा ज्यूं।

हे इंदर!

थनै सुख री नींद नीं सूवण दियौ

असंख असुर दळ

तौ भलौ व्है देवी देवां रौ

अर

रिसी मुनियां रौ

थारै गळै आयौ

डाळौ काढियौ।

हे इंदर!

आज थारौ

डौळ जारी है

थूं मेह नै भींच बैठौ मुट्ठी में

मिरतूलोक रा मिनख

बाका फाड़ै बकाल ज्यूं

आभै सांम्ही

पण

काळजौ घणौ काठौ है थारौ।

हे इंदर!

थोड़ोक ठाडै मगज सूं सोच

मरतोड़ा मिनख री हाय बुरी व्है

अर जे थूं

मेह मेल दियौ मिरतूलोक में

तौ

मिनखां री

आंतड़ियां आसीस देवैला थनै

थारौ अखी राज रेवण री॥

स्रोत
  • सिरजक : भंवरलाल सुथार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै