(दुवा)
रण धूंसा रजथान रा, बै जूंना इकबार
इण जुग आडा पसरग्या, लोभ किया लाचार
रगत राळ नै राखता, कलम कह्यो री कांण
डूंम दलाली में दबी, इकबारां री आंण
जन-मन ज्यांनै जांणतौ, जुग-जीवण पतवार
पूंछ बंध्या गोडा घिसै, विग्यापन री लार
इकबारां रै आंगणै, नकटा बाजै नेक
अकल अडांणी रावळै, टुकड़ां टुळगी टेक
रूळै राज में रोवता, दर-दर देखै दांन
डर दळ-दळ में डूबगी, संपादक री स्यांन
खोटी खबरां नित घड़े, निसंग करै बोपार
आप कहौ ज्यूं छापदै, देखै दस कलदार