म्हैं जद भी देखूं बनराई
सोचूं—
इण भांत-भंतीली बनराई जैड़ा ईज तो
हुवै है संसारी लोग
किणी री कैड़ी परकत
किणी रो कैड़ो सुभाव
कोई सांटै दांई सीधो
तो कोई अड़क गवार दांई अखड़
कोई लांपड़ी दांई लंपट
तो कोई डचाब ज्यूं डचामार
कोई आल री दांई आछो
तो कोई बिसलूंबै दाई खारो जैर
कोई बूर ज्यूं सोरम फैलावतो
तो कोई कांटीडोड ज्यूं
नस्तर चुभावतो
कोई हिरणचबै री दांई तिड़कणो
तो कोई खींप दांई रस टपकणो
कोई बूई ज्यूं बूसेड़ो
तो कोई घंटील ज्यूं रूस्योड़ो
किणी मांय तुंबा रो खारास
तो किणी मांय कागारोटी से वास
कोई मोथिया दांई मूरख
तो कोई फोग ज्यूं सापुरख।
कैवण नैं आपां कैय सकां कै
इण बनराई नैं कुण ई नीं लगाई
आ तो आपोआप उग आई
पण कैवण अर होवण मांय
घणौ फरक हुवै
कैवणो कूड़ो भी हुवै
पण होवणो तो बस
होवणो है
जियां—
दिन अर रात
धरती अर आकास
कैवण अर होवण रो अरथ जाणज्यो
मतीरै अर बिसलूंबै री परकत पिछाणज्यो
कैवण नैं मिनख बस मिनख है
पण होवण सारू
इमरत नैं इमरत
अर जैर नैं जैर ई जाणज्यो!