ऊंचा पथ

प्रगति रा चढ़ ग्यौ

मिनख मौखळौ

आगै बढ़ ग्यौ।

अब तो उड़ै गगन में जांणै,

धरती माथै पग नहीं मांडै।

पांगर ग्यौ विरख ज्यूं

जांणै बिरखा मांय पांगरै पत्ता,

फूल-फळां सूं लद-फद जावै,

यूं फूल्यौ मांण-गरब सूं

मिनख पाय ली जग री सत्ता।

पण

सुख में

चेतै जद स्वारथ,

परमारथ

पग हेठै किचरै।

लालच,

लोभ,

मिनख रै मन में,

बसै

मिनख

मिनखां नै मारै।

तिसणा मन री

कदै पूरै,

भूख हिये री

बढ़ती रैवै।

कदै भागै।

मिनख

मरै तो मरै

मिनख री

इच्छा-मन्सा

मर नहीं पावै।

सुख में जद

धरती रै बेटै

अपणी और पराई सोची।

खुद रै

सुख नै,

सगती नै,

आणंद नै,

इधकारां नै,

जद मेळ्या-तौळ्या

दूजां सूं,

तौ,

उपज्यौ मन में भेद,

ईर्ष्या ली अंगड़ाई।

म्हारी है

म्हैं लूंठौ सब सूं

फेर

बरोबर अै सगळा

कीकर

किण विध होवै म्हारै।

म्हें सब सूं श्रेष्ठ

सबां नै ले'र बैवूं।

तो क्यूं नहीं

सगळां पर म्हैं

हुकम चलाऊं!

जो…जो…

म्हांथी है कमजोर

सगति में

धन में

बुद्धि में

वां निबळां पर

थरपूं अपणों राज,

फेर राजा कहलाऊं।

मन में सोच

जंग रा संख बजाया,

कर भेळा हथियार

आप बर जोरी कर नै

निबळां ने चुण-चुण

उण तो अपणा दास बणाया।

ताकत सूं,

बुद्धि-कौशल सूं,

आप,

आपरो कटक बणायो।

फेर

आपरा भायां माथै

चढ़्यो, लड़्यो

पाड़्या अर मार्‌या

हरा उणां नै

सेवक, चर, गुलाम बणाया।

जमीं, जिनावर, जोरू, सम्पति

खोसी,

आप परोटी,

अर वां सब री

उण सम्पत पर

जा खुद रो हक थरप्यौ, थौप्यौ।

औरां नै

चाकर बतळाया,

खुद वां रो मालिक बण बैठौ।

यूं स्वारथ में पग्यो,

दम्भ में अट्यो,

गरब में पट्यो,

मिनख मद में बौरायौ।

मद में भूल्यो मेळ,

हेज री बातां भूल्यो,

अपणायत गी बिसर

नेह-ममता ने भूल्यो,

इधकारां रो ख्याल,

धरम अर नीति बिसारी,

कर्तव्यों नै छोड़

अनीति मन में धारी।

मांण, तांण, मद भर गरवीलै,

इण धरती पर

उण अपणो

शासन जा थरप्यौ।

राजा बणियो आप,

आपरा अेक छतर

शासन सत्ता रा

राज बणाया।

थ्हांरी-म्हांरी कर

टुकड़ा कर

धरती री सीमावां थरपी।

इण-उण सूं लड़,

जीत-हार रा नियम गढ़्या

भायां ने जीत्या,

पाड़्या

बांध गुलांम बणाया।

बण बैठौ शासक

धरती रो धणी

जळम भोम पर

उण तो इधकार जमायौ।

स्रोत
  • पोथी : पिरथी पुत्र ,
  • सिरजक : ओमप्रकाश गर्ग ‘मधुप’ ,
  • प्रकाशक : बाबाजी प्रिन्टर्स ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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