जियां ऊग्यो

बियां छिप्यो

सूरजी सो, साल बी।

साल तू

बियां याद आई

जियां आती रैई

लारला कई बरसां मांय।

बियां चसक्यो काळजो

बियां चाली चीसां

बियां टूट्या हाड

बियां जाग्या अर सोया

बियां हास्या अर रोया

कीं बी तो नयो कठै हो ?

सो कीं हो—

बियां रो बियां।

पर इत्तो तो होयो

(की नीं होण सूं आच्छो है

की हो जाणों)

टाबरां रो कंवळो, लडायो-सो परस

लियां हो

तेरी ही सोरम

ठेठ ताणी।

जै हो कीं तो

घणोई हो

लारलो साल।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : कृष्ण बृहस्पति ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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