मन री रळी रात्यूं

कातै कातणों,

पीसै अर पोवै

जीमै घणो ई,

पण धापै नी,

पैरयां ओडयां

जीम्या जूठ्यां ई।

जाणै कुण

इण भूख भाव

रो उपाव।

जुग बीत्या

सोधतां,

पण नी लाध्यो।

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलादराय पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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