माथो भचेड़ती

किणी ऊजड़ बस्ती रो

सिकार बण्यां पाछै

घावां छकियो

अधगावळो परजापत

दुनिया रो सिरजणहार

सुध-बुध बिसराय सूयग्यो...

उणरो गांजरो गुमेज

घोड़ियां गमाय पांगळो व्हैगो

अबै म्हां में आसंग कोनी

के देवकी नै जगाय

कूख री साध पूरूं

अरनी

दसरथ री राणियां रै कोड

उण खीर री खुरचण लारै बची!

जे कदे मोकळ व्ही

तो नेठाव सूं घड़ूंला

खेत री काळी माटी सूं

अेक नवो परमेसर...

सावळ घड़ियां उपरांत

उणी खेत री माठ

ऊंडो गाड दूंला!

पण अेक सूळां तणी चीस

अबार-अबार पेट में जलमी म्हारै

थोड़ी बिसाई खावण दो म्हंनै!

स्रोत
  • पोथी : आज री कवितावांं ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी, रावत ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍सारस्वत ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, दिल्ली ,
  • संस्करण : pratham
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