मिल्यो है जद

काळीबंगा रै थेड़ में

राजा रो बास

तो जरूर रै'या होला

इतिहास रा आखर

धुड़ पण गया कींयां

कुंण तो जरूर

भगाई है भूख

कीं दिन

जद तो लाधै

हाडपींजरा में

इतिहास काळीबंगा रो।

स्रोत
  • पोथी : आंख भर चितराम ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘काग ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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