बै ऊपर उठाया दोनूं हाथ

जीवण रा समंदर में

डूबती थकी जिजीविषा

ऊपर-नी चै आता-जाता

हालातां सूं गोता लगाता

फेर भी

मन मांय धारयां

नूंवी आसा अर विश्वास

भलांई

व्है घणी ऊंडी-ऊंडी गैराई

पार करांगा

सब मुश्किल

पावांगा मंजिल

है यो

पूरो पाको

दृढ निश्चय, विश्वास

बै ऊपर उठाया दोनूं हाथ।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : प्रियंका भट्ट ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान
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