जब सूं बिजळी आयी गांव में सचनंण माच्यो

(पण) तब सूं माई बाप री ओलख भूल गयो पांच्यो।

मदरसा कई खुल्या बदलग्या पण बोली व्यवहार,

गणेश की ठौर मासटर गधो जांच्यो।

मनख्याचारो खतम हुयो नहीं धूणिया साथ तपे

भाया-भाया जंग झिड़ियो अब हाथ रगत राच्यो।

यूं हाथां सरस्यूं बोता भी तो कई मिल्या

ऊही पटेला घरा ठाठ क्यूं, भूको छै लाछो।

अब तक अेक परेंड़ो चूल्हो संग खाता पीता

बीच घरां आगण में आढ़ो कुण आकर खांच्यो।

आंधा आगे रो-रो कै क्यूं अपणी भी खोवो

पोथ्यां में उपदेश घणेरो कुण ‘दयाल’ बांच्यो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
जुड़्योड़ा विसै