रोज हांजै

रेत ना ढगला

उपर बई नै

घर बणावुं ,

अैने एक टक जुई

ने राजी थाऊं

विचार मे डुबी जाऊं

पण

एक घड़ी वार मएं

वायरा नै कोरमण मएं

मारी आँख अगाड़ी

टूटी जाय/ढगलो थई जाय

मारै मन नै

अेक अहसास आली ज़ाय।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री कविता ,
  • सिरजक : रवि भट्ट ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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