फागण महिणौ फूठरो, होली देखण हाल।
कुटम्ब सागै खेलणो, गांवो मांय गुलाल॥
गैरो नाचै गैरियां, गैहली मंगळ गांय।
फागण महिणौ फूठरों, हालरियां हुलराय॥
होली रै दिन हेत सूं, हरख मिलावो हाथ।
भैळा आवों भाइडों, बैठो गाळे बाथ॥
गावता फाग गैरिया, चौवटै बजै चंग।
लुगाया लूर लेवती, सोवै छै सतरंग॥
पिचकारी भर प्रेम री, खेलो सब रै खास।
होली उमड़ै हेत रै, महिणौ फागण मास॥
भरै गिलासो भांग री, घर घर पीती गैर।
घूंघरो संग घूमतो, मनड़ो च्यारू मैर॥
फूलो ज्यो छै फूठरो, महिणौ फागण मास।
प्रीत जगावै प्रेम री, हिवड़ै घणो हुलास॥
मनडो होतो ऄक रै, तन सूं रैवो दूर।
भाभज सागै खेलता, होली मांय हजूर॥
फागण महिणौ फूठरो, पल पल जागै प्रीत।
पीव है नाही पास में, दिनडा दोरा बीत॥
परदेस बैठ पीव रै, ओळू मानै आय।
फागण में नी आवड़े, अन्न पाणी न भाय॥