बिकगा हेत बजार में, हिवड़ै रे बौपार में।

सारा हीरा मोती म्है, खो दिया गुवाड़ में॥

क्यूं तो हां अण जाण में

क्यूं हां नुंवी पिछाण में

छळिया छळगा सारी पूंजी

ईं ही खींचा ताण में

बोणा बीज गुलक्यार में, बो दिया उजाड़ में।

सारा हीरा मोती म्है, खो दिया गुवाड़ में॥

इतरा लाग्या सांतरा

भूलग्या सै आंतरा

नैणां बीच मंडीजगा

चितराम कितरी भांतरा

जोणा दिवला देवरै, जो दिया उघाड़ में।

सारा हीरा मोती म्है, खो दिया गुवाड़ में॥

बातां नहीं बुहारणी

घातां नहीं संवारणी

जिनगाणी कांदा री मानी

पड़तां नहीं उघाड़णी

भूल भूल में मूळ गयौ, कंचन गयौ उधार में।

सारा हीरा मोती म्है, खो दिया गुवाड़ में॥

मानी हर मनवार नैं

समझी अपणी धार नैं

लहर भरोसै नाव चली

भूल गया पतवार नैं

रह्या किनारा आंतरा उळझ गया मंझधार में।

सारा हीरा मोती म्है, खो दिया गुवाड़ में॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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