हेत कैवै हूँ हुय जाऊँ-दुगणौ

इतिहास ढूँढलो म्हाँरो

राम-रहीम री राख राड़

क्यूँ हेत रो नाँव बिगाड़ो...?

मती हेत रो...॥

हेत कैवै हूँ घणों हेतुलौ

जोड़ू हेत री तान घणीं

बै मूरख जो हेत नीं जाणै

अैड़ो नीं जीणों अेक घड़ी...।

अैड़ो नीं...॥

हेत नैं हेत घणों जोड़ै

क्यूँ प्रीत री टूट रैई लड़ी?

हेत रै क्यूँ अबै भेत आयोड़ी

हेज री कठै गई झड़ी...।

सागी हेज री...॥

हेत रै लारै मीराँ-किसन सूँ

जोत जीवण री जोड़ी ही

मूरख घमण्डी भोजराज

रूड़ै हेत री तान नैं तोड़ी ही...।

जकै...॥

शकुंतला-दुस्यन्त हेत ऊजळो

बींटी डूबणै सूँ भूलज्यै प्रीत

मीन पेट बींटी मिलणैं सूँ

हेज-प्रीत नैं आई चेत...।

दुस्यन्त नैं हुई प्रीत री...॥

हेत कैवै म्हाँरो मोल नीं कोई

हेत राखतो कोई–देखै

मिळै हेत नीं हाट बाजाराँ

हेत-हेज हिवड़ै-खेलै...।

घणों...॥

हेत चावै भाठै सूँ राखो

हेत राखो चावै मूरत सूँ

हेत-हेत तो हेत हुवै

हुणों हेत-चाईजै जीवण सूँ...।

रैणों हेत...॥

हेत जीवण रो ओई सागी

इतिहास में मँड रैयो सांमीं

राधा-किसन रो हेत देखलो

पड़्यो ऊजळौ है सांमीं

भळै...॥

हेत केवै हूँ हुय जाऊँ दुगणों...॥

स्रोत
  • पोथी : नँईं साँच नैं आँच ,
  • सिरजक : रामजीवण सारस्वत ‘जीवण’ ,
  • प्रकाशक : शिवंकर प्रकाशन
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