मन री ब्यथा

कुरेदै कुण,

चालै चैरा

बानै सुण।

आस उडीक री पीड़ सांतरी,

पूरै तो बेजो बुण।

मन इकतारै तान छेड़ तूं

दूजो नी तू आप ही सुण।

मन धरती पर पड़ै तावड़ो

बळती लाय बुझावै कुण।

मन रो मीत हैं ठंडो पाणी

पण अब बीं नै ल्यावै कुण।

प्रीत जोग अर सेवा धरम री

रीत है बळनो चावै कुण।

जागै रातां कातै बातां

उळझ्योड़ी सुलझावै कुण।

मेळ बिना मन रेवै अमूंज्यो

मन रो मीत मिलावै कुण।

आफळ थारी सुफळ पासी

बणै खरो, बठै जावै कुण।

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलादराय पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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