घम घम्म घमंकत ठम्म ठमंकत

ढम्म ढमंकत ढोल बजै

रण प्रांगण पूजण गेह में गूंजण

जंग में जूंझण सेन सजै।

सूरापण सेती फळे रण खेती

पगौपग आपई रैयत चेती

सुभ सूचना देती वारणा लेती

मेटण ऊंच अर नीच री छेती।

टाळ्यां टळै घुळघुळनै घुळे

सुळझे जितरी उतरी उळझै

नवभारत मांय मचै महाभारथ

आरत वांणी तौ सूरा समझे।

निछरावळ कर जन मांणस रौ बळ

सांभळगी रज रंगत रेती

जद किरोड़ां हाथ उठ्या इक साथ

हरावळ होवसी किरसांण कांमेती।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : रेवंतदान चारण ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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