सुपनां तो सुपनां हुवै

कांई जागता अर कांई नींद रा

बगत री उडीक

निरायत अर नैचो हुवै

जद बुलावै

सुपनै मांय सुपनो

बंजर मांय उडीक ही

रात-दिन

अेक जिस्या लागै हा

टूटती नींद, छिंयां री भेळप

सुपना

पण बै कोरा पानां हां

बाखड़ी हुयोड़ी

बा निज़र नीं ही

किरसा री

पड़ी मरै

हरा सपनां री उडीक

आवता सुपनां

ढळती भोर उजाड़ आळा

आळ-जंजाळ।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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