तपती लाय में

ऊभा अै

रूंख है

हड़मान जी

जका रोज

निगळै सूरजड़ै नै।

हो बी सकै

कदी बैठ्या हा

हड़मान जी

आं रूंखां माथै

बिसांई सारू

जद तो

नीं लागै

रूंखां नै लाय।

दिनूगै-दुपारै

ऊभा रैवै

सिंझ्या अर रात

लागै जाणै

राम बसै

आं रै हिवड़ै स्यात।

स्रोत
  • सिरजक : मनोज पुरोहित ‘अनंत’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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