दूझै तो घाटो

टळै तो घाटो

बांध पाटो

भाग बकरी रा

कियां घड़्या

समदरसी करतार!

होवै बळी

चढै बकरी

थारै थांन

राखै मान

मेमणां नै टाळ

भरै पेट

पराई जाम रा

पण थूं पूरै

मनस्या मिनख री!

जे बकरी देवै दूध

रळा’र मींगणीं

तो जगती कथै कोथ

बिलोवै थूक

दूध दियो तो दियो

मींगणीं रळा’र!

बकरी डरै

मरै तो मरै

खाल रा खल्ला

पगां मिनख रै...

आंत री तांत

पींजै रूई

कातै सूत

बाटै अर बजै

ऊत री ऊत!

जींवती रा

कतरीजै बाळ

ढाबै सरदी

जीया जूण री

खुद नै टाळ!

भोळी बकरी

चढ़ै चकरी!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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