ठा नी क्यूं

टाबर थकां अेक दिन

म्हैं भाभूसा नै कह्यो

मत बेचो बकरो कसाई नै

वे हंस' बोल्या—

बकरो जलमै

कसाई रै पेट सारू

अबार थां टाबर हो

बड़ा हुयां ठा पड़सी

पछै याद आवै

अेक दिन

निजामु री दूकान माथै गयो

बठै दोय जणा

बतळावै हा होळै-होळै

पिछवाड़ै

पलारै हो छुरी निजामु

अर पछै

डांटै हो आपरी बेटी सकीना नै

छुरी री रगड़क सूं

आंगळी कटगी

उण रो खून

बकरै रा कंठां में

रळगो

मिनख अर बकरै रो खून

स्यात

दोनू सुवाद हुवता होसी!

सेवट

बकरै री आवाज

आई प्यो

अेक बोल्यो-

बस अबार ल्यो

दूजो बोल्यो-

आवाज तो काची है

अेक कह्यो-

बस ताजा भाजी है

आज पिसायो है

बाजरा रो चुन

कीमो, बोटी अर

निजामु री आंगळी रो खून

आज रो सुवाद

सदा सूं न्यारो है!

फेरूं अेक बोल्यो-

बेगो सुळझा

निजामु भाई

घर बैठा पांवणां

आज थारै

बेटे री सगाई

म्हैं देख्यो

पिछवाड़े

हलाल, चील, कांवळा

खून

सकीना रै हाथ में

फेरूं बकरै री गळपटी

निजामु बोल्यो

बनां बकरा बेचो कोनी

'हूं' कैय'र

म्हैं चुप हुयगो

अेक सवाल

पैदा हुयो

कांई निजामु

आपरै आंगळी रो खून

बेच सकै है?

दूकान सूं

चालती बेळा

अत्तो कह्यो

निजामु भाई

बस मत ल्याजै

हलाल रो मांस

म्हारै तांई।

स्रोत
  • पोथी : पनजी मारू ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह सेखावत ,
  • प्रकाशक : भँवर प्रकाशन
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