रे मनवा रटले थूँ राम रम्मयो

पिरथी पे' पूंजी कमाले रे प्राणी।

सांचोड़ी सुरताँ ल'गाले सायब सूँ।

काचोड़ी काया री झूंठी क'हाणी।

चुण चुण के काँकर दुमेह'ला चिणाँया।

नितका ही मांडी नुँवी थूँ निसाणी।

पापाँ रा पगथ्या लगाया थूँ पल में।

प्रीत पुरबली जरा ना पिछाणी।

ठसका सूँ रे'णो ठगायो घणेरो,

टणकाई जिद ने हमेशाँ ही ताँणी।

भाया बे'भावाँ भरमीज्यो भुवन मेँ,

जगती नै खुद'की जागिरी ही जाणी।

भटके घणों ही करी बिरथा बाताँ,

बुगला री' भगती, भखै कूड़ी बाणीँ।

धन आळी ढ़ेरी लगा लीन्ही जोधा,

सांचोड़ी संपत संचो रे सुजाणी।

बदल थारे मनड़ै रा 'भावुक'पणाँ नै।

दुनियाँ आदू नी है, आणी है जाणी।

रे मनवा रटले थूँ राम रम्मयो

पिरथी पे 'पूंजी कमाले रे प्राणी।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : भवानीसिंह राठौड़ 'भावुक’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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