धरती तांण ले

मौसम री गुलेळ!

मसखरौ मौसम

मांड देवै मदारी आळो खेल॥

परस री पीड़

गोफण रो झापटो।

किणी रै मन भायो

दुख किणी रै सांवठो।

आभै सूं उतर'र

बावळो, उतावळो

कठै सूं आवै

अर कठै जावै

मारग बिसर्‌यो

डाफाचूक

बटाऊ बादळ

बिण रुत बरस ज्यावै

स्रोत
  • पोथी : हूंस री डोर ,
  • सिरजक : हरीश सुवासिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
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