बीजळ की बेट्याँ का पगाँ मै-
काळ का घूघरा-गमक्या
अर झड़ग्या-
वै सारा भरम
जो थाँकी पीढ़्याँ की पीढ़्याँ
म्हारी पीढ़्याँ की पीढ़्याँ मै
फैलाती आई छै।
म्हारी पसीना की बूंदाँ सूं
न्हाती
रगत का आचमन करती
अर मुळकाती आई छै।
पण, अब
कसगी छै म्हारी मूठ्याँ।
थाँका मांड्या लेखां ने फाड़'र
खूटगी-नीलकण्ठी तीसरी आँख।
जो हेर हेर'र करैगी- बनास
जुलमा को,
शोषण को,
अन्याव को।