छोडां में कांई सार

गूंठळी तांई पूगौ

जिनगानी री गूंठळी

करड़ी घणी पण मीठी

इण रौ गूदौ ताळवै में चेंठै

पण अकथ आणंद देवै

तजौ सगळा ऊंधा कळाप

सोक दोस पंपाळ

चाखौ इण गूंठळी रौ

सुवाद चाखौ

अर आप-आपरी बत्तीसी नै

साबत सबळ राखौ।

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण, जयपुर
जुड़्योड़ा विसै