घणौ दोरो हुवै है अेक ग्रामीण स्त्री रो लिखणौ

मनड़े रा भावां नै सबदां रै मांयनै पिरो’र राखणौ

भाग फाट्यां रै पैली ही पड़ै है उणनै बैगो उठणौ

आंख्यां मसळतां मसळतां गायां नै पड़ै नीरणौ

पोठां री तगार्‌यां भर-भर नै रूड़ी माथै गेरणौ

बेगी-बेगी पड़ै उणनै चयारूं मेर ठाण बुहारणौ

बाळू माटी बिछयोड़ी बाखळ सूं ओगदो सौरणौ

गायां धाप्यां पछै उणारो न्याणौ देय धार काढ़णौ

बांट चूल्हा माथै चढा’र ओज्यूं फूस घालणौ

घर वाळा जाग्यां पैली सैं ताणी चाय बणावणौ

जै कोई चाय नीं पिवै तातौ दूध कर पकड़ावणौ

पूरा घर री धूड़ माटी नै कपड़ो ले’र झाड़णौ

बडेरां री बणायोड़ी मोटी हैली में पोछो फेरणौ

जितरै घड़ी सूईंया रो पी.टी.उषा री जियां दौड़णौ

घर रां बडेरा ताणी दूसरकां चाय रो बखत होवणौ

बिलोवणो कर'र उणमें सूं माखण नै निकाळणौ

उतावळा हाथ चला'र साग बणा आटो छाण गूंदणौ

रोटी बणार पाछै सै नै पुरस अर थाळ पकड़ावणौ

गायां नै पाणी पाय अर छियां रै मांय वानै बांधणौ

पाछा सैं रा जूंठ्या बरतण भेळा करणा अर मांजणौ

रसोई री पट्टी पूंछणी अर गैस नै पाछो चमकावणौ

नहावणौ, धोवणौ परवार री सलामती री दुआ मांगणौ

रोटी जीमतां-जीमतां रोजिना ही दोपार हुय जावणौ

भागतां-भागतां ओजूं भी सैंकड़ूं कामां रो बच जावणौ

थोड़ी कमर सीधी कर'र पाछी काम में लाग जावणौ

मन में भाव आवै घणां ही है पर सैं रो दब जावणौ

कदै गायां रा दूध धार में, चाय रा उकाळ में मिल जावणौ

बाखळ रा बुहारा में, बिलोवणां री झाट में रळ जावणौ

साग रा छिमका में, आटा रा लोच में ही छिप जावणौ

कदैई बडेरा रा आदेश में, हमराही री चाह में दबणौ

टाबरियां री किलकारियां, कुचमाद्‌यां में लुट जावणौ

सैं सूं पैली मुंड़ै अंधेरै उठणौ अर सैं सूं पाछै सौवणौ

मनड़ै रा भावां रो हिलोरां लेय’र मनड़ा में रै जावणौ

घणौ दोरो हुवै है अेक ग्रामीण स्त्री रो लिखणौ।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मान कँवर ’मैना’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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