उय्यां तो जनम्यूं जिद सैं हीं मैं नित्त निमटबा जाऊं छूं,

दिन मैं दो बार बिना निमट्यां कद चैन चित्त मैं पाऊं छूं?

मामूली गड़बड़ होतां हीं मूंड़ो बण जाय मुहर्रम-सो,

जी दिन हो जावै खुल'र दस्त, ऊं दिन तींवार मनाऊं छूं।

सिरमोर सभी तींवांरां को छै पेट सफाई को तिंवार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

मैं या ही सोच'र सदा पेट नै साफ राखबो चाऊं छूं,

बेमारी का डर सैं घर की रोट्यां भी कम ही खाऊं छूं।

पण, जिद कोई का सैं म्हारै जाय जीमबा को न्यूतो,

बस-बस मत पूछो मैं ऊं दिन ज्यो-ज्यो प्रोग्राम बणाऊं छूं।

खा जास्यो चाब आंगल्यां नै जिद सुण लेस्यो सब समंचार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

हर भगत हाथ मैं ही रै छै, हरडै, अजवाण, लूण काळो,

सोवरचल, सूँठ'र अरकबटी, हिंगास्टक बैदनाथ हाळो।

छै ओखद कसी हाजमा की ज्यो म्हारै कन्नै नै लादै?

इंडोळी तक को तेल, काड़ दे ज्यो'क कबज को दीवाळो।

सुलफो-गांजो अर भांग-चडस ज्यो भूख बढ़ा दे जोरदार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

मैं ही क्यूँ म्हारा सब घरका छै अस्या जीमबा का गुलाम,

बस्ती भर की टो राखै छै अक कुणकै कांईं पड्यो काम?

कुणकी भू आठूं पूजैली, कुणकी जळवा'र जडूलो छै?

कुण-सा को आज कीरतन छै? कुण कद पौंछैलो परम धाम?

कुण का भाया को मेळ छै'र कुणकी बाई की छै बढार?

मैं गयो निमटबा एक बार॥

न्योता कै समचै नींद त्याग, झट जाग जिमक्कड़-सम्मेलन,

कर लीनू बिना अजण्डै ही, सगळा सदस्य मिल अधिवेसन।

आयां पैली ही पास हुयो प्रस्ताव सबां की सम्मति सैं,

“निमटो-निमटो” का नारां सैं झट जोर पकड़गो आन्दोलन।

वै पक्का सत्याग्रही लोग, जाणै मानबो कदे हार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

सीता तो सिल्ला बिछादी'र लिछमण्यू लपक ल्यायो लोढी,

बैठ्यो बलराम घोटबा नै, किस्न्यू काळी मिरच्यां फोड़ी।

छाण्यां पैली ही पीबानै संगराम माचगो देवासुर,

वा धर'र मोहनी-रूप, कराबा नै राजीनामू दोड़ी।

पीबा नै बैठ गया सगळा अब नम्बर सैं पंगत लगाऽर।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

घर मैं छो तारत एक, निमटबाळां की दरजण की दरजण,

दो म्हे, अर दस हर बरस जनमबाळा रंगरूटां की पलटण।

सब एक दूसरा कै माळै पड़ रह्या निमटबा जाबा नै,

म्हे दोन्यूं दूर खड़ा देखां, ऊं आन्दोलन को परदरसण।

देखां पैली कुण पार करै तारत-गढ को परवेस द्वार,

मैं गयो निमटबा एक बार॥

पीतां ही भांग निमटबा की संक्या म्हांकी भी जाग गई,

रै-रै'र पेट कै माईं नै कळमळ्यां चालबा लाग गई।

तारत कै ओड़ी झांक्या तो, अब भी दस का दस जूझै छा,

ऊँसैं ज्यादा ठैर्‌यो गयो, वा पाड़ोस्यां कै भाग गई।

मैं सगळी टाबर-टोळी नै यूँ समझाबा लाग्यो बुला'र।

मैं गयो निमबटा एक बार॥

ज्यो आठ बरस सैं नींचा छै वै तो बारानै जायाओ,

अर ज्यांनै हाजत ही नै हो, वै बैठऽर थोड़ो गम खाओ।

ज्याँनै हो घणी उतावळ ही, वै टिकट-घरां की खिड़की पर,

ऊबा रै जैयां अण्डै भी बस लैण लगा'र बैठ जाओ।

जाबाळा भी बेगा आज्यो, उण्डै ही मत करज्यो अँवार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

यो न्याय चुकायां पाछै भी म्हारो तो छट्टो नम्बर छो,

दस-दस मिनटां भी सब ले तो उण्डै पूरो घण्ठो भर छो।

नम्बर ही नम्बर मैं कोडै हो जाय सिया-सुयम्बर ही,

सरदी मैं न्हाबा अर गाबा धोबा को भी पूरो डर छो।

ब्याजूना मिलता होता तो लीयातो दस तारत उधार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

जैयां-तैयां वाँ पाँच्याँ कै पाछै म्हारो नम्बर आयौ,

मैं भाग्यो-भाग्यो जा'र ठीक ठीयां माळै पग धर पायो।

संक्या को मान मारबा सैं वा भांग काम ओठो करगी,

खै तो लत्ता ही बिगड़ै छा, खै मळ ही नहीं उतर पायो।

“अब उतर्‌यो; हाँ, अब उतरै छै” यूं घण्टा ही दीना गुजार।

मैं गयो निमटबा एक बार‌॥

मैं बैठ्यो-बैठ्यो सोच रह्यो अक आज जीमबा जाऊँला,

लाडू-पूड़ी अर घोळ सपट बर पेट मजा सैं खाऊंला।

मुन्नू होगी छै मिडल पास, कोड़ै दरखास दिवाणी छै,

छुटनी कै ताईं चोखा-सा छोरा की जुगत भिड़ाऊँला।

बस, मत पूछो, ऊँ भगत मनै उण्डै ज्यो-ज्यो आया विचार,

मैं गयो निमटबा एक बार॥

सारा घरका जींम'र आगा, मैं तारत मैं हीं ऊँघ रह्यो,

“मम्मी! डैडी कोड़ै छै ये!” यूँ राम किलाणी पूछ लियो।

ज्यो दस खोंजां का रेवड़ नै घर लीयायी छी घेर-घार,

ग्यारवां खोज की चिन्ता मैं उड़ गयो होंस ही रह्यो-सह्यो।

पण फेर मनै भी हेर लियो वा तारत को चूळ्यो उतार,

मैं गयो निमटबा एक बार॥

ईं कविता नैं साँचा मन सैं ज्यो साँझ-सँवारै सदा रटै,

वो जाय जीम्बा नै नित की अर सभी पेट का रोग कटै।

तारत मैं बैठ्यां-बैठ्यां हीं, जग का सब मसला सुळझावै,

छयाळयां की जैयां साख फळै घरहाळयाँ की हर मास छटै।

आगली पगां चाल्यां पैली गोद मैं गीगलो नयो त्यार।

मैं गयो निमटबा एक बार॥

स्रोत
  • पोथी : चबड़का ,
  • सिरजक : बुद्धिप्रकाश पारीक ,
  • प्रकाशक : प्रमोद प्रकाशन मन्दिर, जयपुर
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