गांव रौ तळो
जठै परभातां री पौर सूं
सिंझ्या तांई
मिनखां रौ जमघट
निगै आवतौ।
तळे री पाळ माथै
वो बड़लै रौ रूंख
जठै ठाडी छांव में
तावड़ियै री तिड़की
लू रै लपटां रै बीच
भरी दुपहरी
वो एवड़ रौ अर
ग्वाळा रौ झुंड
तावडौ टाळता।
ऊंठारुओं रौ टोळौ
अर वो गांव रौ रैबारी
जकां रै पसीनै सूं
आवती माटी री महक
तळे रौ ठाडौ पाणी पी’र
तिरस बुझावता।
अरण में चालता बळद
बरत सूं खींचता
ठैठ पाताळ सूं पाणी
जद
मिनखां रै चैरे माथै
मुस्कान रा भाव
निगै आवता।
एक दूजा नै देख’र
खीजता जाखौड़ा
अर ऊंठार करता
आपरै जाखौड़ां रौ मोद।
गांव रै तळे
मिनखां री वो हथाई
एक दूजै नै करता
मसखरियां
खींचता चिलमा रा चुटट
अर
उण मिनखां में
निगै आवतौ
हेत, प्रीत अर अपणायत
न जात-पांत रौ भेद
न ऊंच-नींच रौ भाव
सगळा पीवता
गांव रै तळे रौ पाणी।
पखालां भरीज’र
घर जावती
घर रा टाबर
अर घरवाळी
पखाल सूं भरती
वो माटी रा कोरिया घड़ा
जिण माथै लागती
माटी री ढ़कणी।
सिंझ्या रै बखत
पिणियारियां
जावती गांव रै तळे
बुढा बढैरा ने देख’र
काढती लांबो घूंघट
अर ओरणै रौ
खोसती आडौ पल्लूट
तळे रै पिणघट
करती हथायां।
आज सूख ग्यौ
वो गांव रौ तळो॥