हरेक मानवीं ना हैया मंय

हमेसा वाज़ती रैवी जुवै घंटी!

घंटी नी टण-पण

जागरण है ज़मारा नूं...

स्कूल नी घंटी ग्यान आलै

मन्दर नी घंटी भान आलै

घुदा नी घंटी धान आलै

गाडी नी घंटी टेसण मातै पुगावै

अर मोबाइल नी घंटी

मनख नूं काम बणावै।

अेटले घंटी वाज़वा दौ

वज़ाडता रौ/हांभरता रौ

पण कैनेयै गळा नी घंटी बणौ नकै।

स्रोत
  • सिरजक : छत्रपाल शिवाजी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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