ज्यादा तो कोनै, दस को छो, पण दस भी कम हो छै काँईं?
दो म्हैना मूँड पचाऊँ छूँ याँ दस का दरसण कै ताँईं!
फेर्यूँ भी “आज नहीं, तड़कै” ये कोई नया सबद कोनै,
ज्याँका सुणबानै हर म्हैनै ऊठै छै फड़क आँख बाँई।
जाणै कुण-सा बड़भागी को तड़कै ही मूँड़ो दीख्यायो।
गैला मैं लोट पड़्यौ पायो॥
बड़काँ कै मूँडै सुणी सदा, धरती की घणी बड़ाई छै,
पण “धरती सोनू ऊगलै छै” या आज समझ मैं आई छै।
आमर ओड़ी आँख्याँ फाड्याँ कद कुण की आस हुई पूरी?
धरती ओड़ी देखऽर चाल्याँ होगी अणकरी कमाई छै।
मैं आँख्याँ मीचऽर मन-हीं-मन धरती माता को गुण गायो।
गैला मैं लोट पड्यो पायो॥
पैली तो फागण को म्हैनू समझ'र मैं मन मैं डरप गयो,
कोई हाँसी करबानै हीं पटक्यो होलो यो लोट नयो।
पण जाणै, कद कैयाँ उठाऽर, चुपचाप चोर ज्यूँ छानैसी,
च्यारूँ ओड़ी झाँकतो हुयो ऊँनै गीज्या मैं मेल लियो।
फटकार भाळ की भी बाजी तो तन काँप्यो, मन भै खायो।
गैला मैं लोट पड़्यौ पायो॥
दो पैंड बध्याँ भी जिद कोई नै बोल्यो तो हिम्मत आगी,
पल-दो-पल नै हीं जागो, पण मूँमैं सद्बुद्धी भी जागी,
सोची अक जीं को पड़गो हो वो रोतो-रोतो आ'र मनै,
पूछै तो मैं ऊनै दे द्यूँ बण हरीचन्द को सो त्यागी।
दो रस्ता पार हो गया पण कोई न पूछबा नै आयो।
गैला मैं लोट पड़्यौ पायो॥
मैं सोची थाणा मैं चाल'र यो लोट जमा करवाणू छै,
जींको हो, सो ले जाय आ'र मूनै तो पुन्न कमाणू छै।
पण, इतरा मैं हीं थाणा को नकसो आँख्याँ आगै खिंचगो,
वो नानाजी को घर कोनै आई.जी.पी. को थाणू छै।
वै पूछैला यो लोट तनै कद, कोडै, कैयाँ क्यूँ पायो।
गैला मैं ळोट पड़्यौ पायो॥
तू कुण छै, अर कोडै रहै छै अर कांई रोज कमावै छै?
घर मैं कुण-कुण छै ज्यो थारा पीसा पर मोज उड़ावै छै।
अण्डै तो पैली बार आज यो लोट जमा करवावै छै,
पण, वै कोडै घर मेल्या छै ज्यो नित्त सड़क पर पावै छै।
म्हे तनै हेर हार्या पण अब घर बैठ्याँ राम पकड़ ल्यायो”।
गैला मैं लोट पड़्यौ पायो॥
म्हारी उपजत याँ बाताँ को देताँ जवाब चकरावैली,
वै जँगळा मैं धर देला तो कुण की जमानत्याँ आवैली?
वै ट्यूसन करबानै ग्या छा पण पाछा हाल नहीं आया,
या सोच'र वा रोटी लींयाँ आँख्याँ मैं रात बितावैली।
फळ भोग पाप को लेस्यूँ पण यो पुत्र कमाबा सैं धायो।
गैला मैं लोट पड़्यौ पायो॥