गरीबी रा पेड़ नीं

झाड़ होवै

कंटीला

या फेर जळकुंभी

गुथंमगुथा

रिसता पोखर नदी नाळां में।

पनीली आंख्यां

सुपनां री जगां

वठै थोर उग आवै

सब्ज बागां बिचाळे

आतंक मचाती।

दो दिन कंवळी सरस झाड़

जड़ कट्यां उडै-फिरै

सींव लांघता

अंध दिसावां में।

भगुळां रै हाथ पड़यां

बवंडर

बणै हमेस

हंसती आंख्यां री किरकिरी।

थक्या-मांदा

लू बिचाळे

उडता फिरै

गरीबी का झाड

चूल्है री आंच सारू।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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