गांव छोड़’र
शहर आई मां
समाचार ल्याई छै
घर-गांव रा।
ऊदळी रांड
बाबूड़ा री बहू
जेठ संग भाजगी
काण टूटगी!
कायदा आंधा....
त्यो त्यो हो री छै
ऊभी आंगळी पूरा गांव में।
वो लिछ्मीचंद
जो देतो रह्यो
ब्याजू अर बाढ़ी
पांच हज़ार दिया छा
सिरमौर आगै हो’र
सांवतियां रा काज में
इब लिखवाली तिकड़मी
पूरी पांच बीघा जमी
ऊं रै छोरा रा हाथ सूं।
अर, वा भरत्यो
दो धोळा ढूंढा कर्या पछै
इतरातो पैर ई ना धरै
जमी पै
जाणूं पैड़ी लगा दी
रामजी कै।
ठंडी आह भरती
मां भखै-
भाई-भाई रा दुश्मन
वा मातलो
छोटा भाई नैं
हाई-कोरट घिस्यां फिरै
अकारथ अकड़तो
बिण फल री डाल सो।
गांव मोतीचूर रो लाडू
खिण-खिण खिंडरगो
घर-घर काणी पीठ।
खाली पनघट
ऊजड़ चौराहा
उदास गलियारा
अणमणा चौक
आड़ लग्या दुरजा
बंद गांव री पोळ।
मरघटी सुन्याड़
रंग-चाव ढल्या
सूनी गलियां
बाज लफंगा
आतंक रा ढोल रह्या।
बस्ती हिवड़ो किरच-किरच
ठंडी पड़ती आंच’क
गांव छोड़
शहर आई मां
समाचार ल्याई छै
घर-गांव रा।