पौ फाट्यां

निरखूं

पोलो ग्राउंड सूं

सूरज उग्यां तांई लगोलग

भाखरां माथै

भांत-भंतिला

बादळां रा रंग।

बदळै है छिण-छिण अै रंग

आपरो रूप,

जिकां मांय

म्हारी ओळख रै रंगा सूं अळगा

कीं नवा रंग,

ज्यां रो नीं जाणूं म्है नांव।

पण चावूं–

चुण-चुण भर लेवूं अै सगळा

नैणां मांय

अर जाय’र छिड़क द्‌यूं

म्हारै थार री माटी मांय,

अकाळ सूं जूझता घरां माथै,

किणी गरीब रै चूल्है रै

असवाड़ै-पसवाड़ै

ओळूं मांय उदास दिलां री

भींतां पर।

भर सक्यो जे अै रंग

तो नेहचो राखो

चटकै राखो

चटकै ही बावड़ूंलो म्हैं

आं रंगा साथै

पाछो आपणी माटी मांय।

स्रोत
  • पोथी : रणखार ,
  • सिरजक : जितेन्द्र कुमार सोनी ,
  • प्रकाशक : बोधी प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै