म्हारा बेली

थूं अेक दिन चाणचकै

इण घोर रिंधरोही मांय

म्हारो हाथ छोड'र

ठाह नीं कठै जाय’र लुकग्यो

सोच्यो तो म्हैं हो

पण थूं म्हारो उस्ताद निकळ्यो

म्हैं गुमग्यो म्हारै सूं का थारै सूं।

म्हैं थनै हेलो पाड़तो

म्हारा बेली..!

पड़ूतर में...

सूनी गूंग कटार ज्यूं

घुसगी म्हारै काळजै मांय

म्हैं हाल तांई अठै बेठ्यो हूं

थनै उडीकतो!

होळै-होळै रिंधरोही बदळती जाय रैयी है

सूख रैया है अै सगळा रूंख अर तळाव

छानो पड़ग्यो है पंखेरूवां रो हाको

हेताळुआं री रगां मांय थमग्यो है लोही

स्सै जणा चितबांगा हुयग्या

घर रै आगै कळ्ळाटियो मचग्यो

थारै टाबरां अर बेलियां री आंख्यां सूं

आंसू थम कोनी रैया है

बां नै धीजो बंधावां पण

अबै भरोसो नीं रह्‌यो म्हारै पर

म्हैं इण चितराम ने देख’र

साव सूनो हुयग्यो

अर म्हनै लखायो कै

ईं रिंधरोही री हरियाळी खत्म होयगी है

भींत्यां बण’र ऊभा है सगळा मारग

म्हनै होळै होळै घेर रह्‌या है।

लोही मांय बैवण लागग्यो है इकलापो

सांसा में दावानळ री गंध घुळगी है

बगत थमग्यो है

रात अर दिन अेकसा हुयग्या है

रोसणी अर अंधारो अेक हुयग्यो है।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल भाटी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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