गांव कै बीचै-बीच
एक मंदर
च्यार फगत्या
एक तबारी
परकम्मा
ठाकुर जी को घर
खुल्या क्वांड...
गगन गुंजाती ढोलकी,
टीप मैं गातो गळो
पीपळी का पान झंकारता मंजीरा।
घर में तीन मूर्त्यां,
तबारी मैं पांच कीरतन्यां
गर्याळा में तपणो तापता गांव हाळा
फगत्या पै लुगायां की बातां करता
दो भायला,
सन्न-सन्न बागतो बायरौ...
सब जागण कर र्या छै।
कीरतन्यां, कीरतना मैं
गांव हाळा, तपणा मैं
ठाकुर जी, बागबा मैं
अर
भायला, लुगायां में...
सब मगन छै।
एक धुन चाल री छै
लगन बिन
जागै ना निरमोही।