सोनळ पींजर काया कळप

अंतर में, आसूडा टळकै

भंवर बोल, मन में बस जाय

रंग रूडो, तन कैद कराय

घणा गुणा, गुणवान गळै

तानसेन, डोढिया पळै

तानी रोवै, वन-वन मांय

जीव अळूझै, अंतरदाय

पांख खुलै कद, पर आधीन

कुण बांटै दुख, दीन मलीन

बूझै कुण, मनडै री बात

सूकै सगळा, जोवण स्वाद

जाणै सदा, परायो भेद

किण सू कैवै मन रो खेद

कपट करै, चित राखै गोय

परगट कदे, करी ना रोय

म्हारो मन, पण थारै मान

पड्यो कैद मे, जगरी जाण

मन-सूवटिया, म्हारी मान

दुखडो रो रो, निक बखाण

महलायत रो हियो पसीजै

पींजर खोल्या, जीव पतीजै

जे उठसी, हिवडै में हूक

कुण सिल छाती, करसी चूक

सुर में सगळा प्राण जगाय

कर कदण, जन रै मन मांय

कळप-कळप, दे जगत रूवाय

जिणसू मुगत हुवै काय

फेर हरख सू, उड वन मांय

मगन सूवटी-सुरता भाय।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : रामनाथ व्यास ‘परिकर’ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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