म्हूं जंगळाती

आप जंगळी कैय सको

बसूं-खसूं जंगळां में

थूं देख म्हारी हथाळयां

कित्तो है कंवळोपण

म्हैं पण घडूं

काठ रा काठिया-कड़िया

जणां देख

हथळयां में ऊग्या है

रूख री ठोड़ आयठण।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : अशोक परिहार 'उदय' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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