गाम भाज्यो बगै सैरां कानी
सैर हुवण री आफळ मांय
सैर बैठ्या मुळकै
इणरी भोळप नै देख।
दिनां-दिन आंधै हुवतै गाम नै
निजर नीं आवै आं सैरां रै मांय
भीड़ रै बिचाळै अेकला रैवणिया गाम
जिका बरसां पैली इणरी भांत
आंख मीच’र आया अठै।
इण बात सूं अणजाण है गाम
कै सैरां मांय जाणो
फगत जाणो ईज कोनी
ओ पलायन है आपरी बिरादरी
अर संस्कृति सूं।
ओ पलायन है—
आपरी माटी अर ठौड़ सूं
जकी रै साथै बरसां सूं रैयो जुड़ाव
फगत इण सोच सूं टूटै
कै सैर-सैर ई होवै
अर गाम-गाम।