अै कुआ
अर
बावड़ी
कुण चिणाया?
स्यात
इण बात रो ठा
म्हानै नीं
पण
गीतड़ां री
झीणी रागां
सुणकर
म्हारो मन
हरखीजै
सोच-पणिहारी
परम्परावां रा
अै
रीता ठीकरा
माथै ऊंचकर
बड़-बड़ावती रह्वै
म्हारी
सवा लाख री लूम —
बासते लागगी
इण सूमड़ा
सिरकारी
हेण्डपंपा रै
यां रै
भरोसे
बिसार दीनी
म्हूँ
म्हारी
दोगड़ री
पणिहारी
औळखाण
अर
ऊंच लिया
मांथै उपरां
फैसन री
ईंडूणी पै
नुवै
बोध रा
मोटा घड़कल्या
अै
रीता भांडा
किणीज रा
खोटा सूण करण नैं
नितरोज
गांवती फिरुं
गमगई ईडूंणी—
इण मांय
म्हारो
कांई कसूर
म्हैं तो
सुहागण-भागण
होंवता थकां भी
किणीज
सूणी रो
खोटो सूण
बण कर
मन ही मन
उधेड़
न्हाखूं
जूनै
जुग री जेवड़्यां
पण
परम्परा रो
यो
बावळियो
टींगर भी
तो
म्हारी गोदी मांय
बिळखै
आ
रीता बासणां रै लगां
जै साथण्या
साथै हुंवती
तो
म्हैं भी
पायलड़ी री रूण-झुण
ईंडूणी री लूम रा लटकां
रै
लीलटांसी रंगा साथै
रमझोळ करती
गाती-चालती
कुण तो चिणाया…?
है तळाव..!