अणहद नाद तो

सदा ही वाजे है

चाहै कोई सुणे या न्हीं सुणे

अणहद नाद नै सुणवा री खातिर

बणणो पड़े है कबीर

अठै सब होणो चावे है वीर

कुण बणै कबीर?

कबीर कोई मिनख तो

हो न्ही

वो हो एक विचार

इयां तो आज मिनख

बणणो ही घणो दोरो काम है

फेर कोई कियां बण सके है विचार?

विचार जिका हाथ पाँव

जिको गाँव ठाँव

जिकी जात पाँत

जिको धरम धजा

राजा परजा

बस, फकत एक व्याप्ति

देही में रगत ज्यूँ

जिस्यो माँहे बिस्यो बारै

एक बळबळतो अंगीरो

इणने हथैली माथै कुण धारे?

जो इण अगन नै ओलखै

वो साँभल सकै है

अणहद नाद

आदकवि वालमीकि ज्यूँ

पीड़ा रै पुसवां सूँ वो करै

समै रो वन्दण।

आतम रो चन्दण

जद घिसीजै इतिहास रै ओरीसै

तो हर रगड़कै सूँ

फूट्यां करै है

अणहद नाद

पण तिलकार्थियाँ री भीड़ में

कुण सुणै, कुण साँभळै?

सैंगा नै उतावल है

टीको धार नै टोकर बजावण री

अणहद नाद तो

सदा ही बाजै है

वायरा रै बिचोंबीच

घोर अंधारै रै कीच

विगस्या करै है

एक कमल सरीखो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण: भगवती लाल व्यास ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : कुंदन माली ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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