अबोली छै ज़िंदगी

याद आवै साथिड़ा जिणां रै साथै खेलता

उण समै ना कोई छल ना कपट हो

ना हो कीं गमणै रो डर

पण पावणं री होड़ में आज गमा दिया दोस्त।

रूंखड़ा माथै अेक-दूजां रा नाव मांडता

गलियां-पोळज में साथै रमता

लुकछुप घरां सूं तलाबां तैरण जांवता

ओळ्यूं घणी आवै उण भाईलां री।

मिळां जदै उण साथियां सूं

पुराणौ समै याद आवै

समै रो केड़ो पतियारो

उण साथियां मायनूं गमगो वो हेज

अबोली छै जिंदगी।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : उगमसिंह राजपुरोहित 'दिलीप' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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