आभै सूं जद इमरत झुळकै,
मुळकै हियो फूंवारां में।
मरुधर थारो रूप रसीलो,
सावण तीज तुंवारां में॥
हरियाळी सिंगार करें है,
थारी ओरां-छोरां में।
कोयल, बुलबुल, मोर बिखेरै,
हेत रेत रा धोरां में॥
दाख- छुंवारां सूं रस बत्तो,
बाजर-मोठ-जुवारां में।
मरुधर थारो रूप रसीलो,
सावण तीज-तुंवारां में॥
मेळा-खेळा मांहीं घूमै,
टावर-टीबर टोळा में।
कतरां रो मन अटकै भटकै,
ऊँटां री रमझोळा में॥
जोबन खावै बंट मरोड़ा,
परण्या और कुंवारां में।
मरुधर थारो रूप रसीलो,
सावण तीज- तुंवारां में॥
झेला-झूमर-रखड़ी-नथड़ी,
गोरयां रै तन सौवै है।
ढोला री बाटड़ली मरवण,
बैठ झरोखां जौवै है॥
बातां करलै झीणो घूंघट,
आंख्यां और भुंवारां में।
मरुधर थारो रूप रसीलो,
सावण तीज-तुंवारां में॥
अजब अनोखी प्यारी-न्यारी,
मरुधर थारी खूबी है।
लिछमी खुद अवतार लेय ने,
उजळे आँगण ऊभी है॥
रतन निपजता देख्या थारै,
कचरा और बुवारा में।
मरुधर थारो रूप रसीलो,
सावण तीज-तुंवारा में॥
चंग ढोलवयां ढम ढम बाजै,
बँटे बधाई घर-घर में।
छंद सुरीला कंठ गुंजावै,
महाकाव्य सी मरुधर में॥
अलंकार रस मूँडै बोले,
मोतबिरी मनुवारां में।
मरुधर थारो रूप रसीलो,
सावण तीज- तुंबारां में।